Socrates - A Great Philosopher

ईसा मसीह के जन्म से लगभग 400 वर्ष पहले सुकरात एथेंस में रहता था। बाल्यावस्था में वह कुरूप तथा ठीगना था और उसकी नाक चपटी थी और उसकी आंखें बाहर की ओर निकली हुई थी। उसका पिता एक निर्धन व्यक्ति था जो पत्थर काटने का काम करता था अतः वह सदैव फटे पुराने कपड़े पहनता था।
अपनी उम्र के अन्य लड़कों की तरह वह भी स्कूल जाता था जहां पर सबसे अधिक महत्वपूर्ण पाठ संगीत और व्यायाम के थे। उसने कुछ विज्ञान और गणित भी पढ़ा साथ ही कुछ ज्ञान नक्षत्रों के बारे में प्राप्त किया किंतु उसने इतिहास और भूगोल के विषय में इतना नहीं पढ़ा जितना आजकल के बच्चे पढ़ते हैं। यह विचित्र तथा छोटा बालक जिसकी गर्दन छोटी थी तथा जिसका चेहरा साधारण था विचारशील था। वह प्रत्येक समय अपने साथियों के साथ जो ध्यानपूर्वक देखा करता था और बहुत ही कम बातों को अपने निरीक्षण से बचने देता अर्थात सब कुछ समझ लेता था प्रत्येक बात को ध्यान पूर्वक देखता तथा समझता था।


सुकरात के पास बड़ा मकान तथा अच्छा फर्नीचर नहीं था। ऐसा प्रतीत होता था कि ना तो उसे धन की इच्छा थी और ना अच्छी वस्तुओं की। जैसे-जैसे वह बड़ा होता गया वैसे-वैसे शारीरिक आराम तथा आनंद के विषय पर कम विचार करने लगा। उसने अपना सारा ध्यान उन बातों में लगा दिया जो श्रेष्ठ, सम्मानित तथा न्यायपूर्ण थी।

सुकरात नगर में पैदल ही घूमता और लोगों से बातें करता रहता था। एथेंस के निवासी गलियों में उसकी परिचित शक्ल को ढूंढते रहते थे और अपने मित्रों को कहां करते थे "हां", वह सुकरात ही है, आओ उससे बातें करें। कुछ समय के पश्चात सुकरात की प्रसिद्धि अध्यापक के रूप में हो गई अतः  वह श्रेष्ठ अध्यापक समझा जाने लगा वह सड़कों पर घूमता रहता था और बाजार के मुख्य स्थानों पर खड़े होकर ऐसे किसी भी व्यक्ति से बातें करने लगता था जो उस को संबोधित करके अभिवादन करता था। उस से बहस करने के बाद या उसके प्रश्नों का उत्तर देने के बाद उससे बातें करने वाले व्यक्ति चकरा जाया करते थे। सुकरात ने अपने देश के निवासियों को बताया था कि 

"हर एक मनुष्य को अपनी विचार शक्ति को विकसित करना चाहिए ताकि बुद्धि के प्रयोग से ज्ञात हो सके की कौन सी बात ठीक, उचित, सत्य एवं सम्मानपूर्ण है और उसके आधार पर ही उसे अपने आचरण को ठीक करना चाहिए।"  
वह एथेंस को आदर्श राज्य बनाना चाहता था उसने अपने शिष्यों तथा अनुयायियों में से प्रत्येक व्यक्ति को बताया कि "यह उसी समय संभव है जब प्रत्येक नागरिक अपने मस्तिष्क को शुद्ध और  श्रेष्ठ बातों को देखने के लिए शिक्षित
करें।" 

उसका विश्वास था कि प्रश्न करने तथा वाद-विवाद करने से उन्हें इस कार्य में मदद मिलेगी और इसलिए ही वह सदैव लोगों से बातें करने के लिए खुली गलियों में घूमता रहता था।
जब सुकरात बुड्ढा हो गया तब उसकी प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैल गई। बहुत से अमीर व्यक्तियों के घरों के दरवाजे उसके लिए खुल गए क्योंकि लोग उसे अपना मेहमान (अतिथि) बनाने में अपने आप को गौरवशाली समझते थे, थोड़े समय में ही शिष्यों का एक विशेष गुट उसके चारों ओर इकट्ठा होने लगा और जहां कहीं भी वह जाता था वे लोग उसके पीछे पीछे जाते थे। उसके शिष्यों में एक नवयुवक था। जिसका नाम प्लेटो (Plato) था। उसने अपने गुरु सुकरात के प्रत्येक शब्द को अपने हृदय में सम्मान पूर्वक संचित किया तथा कुछ वर्षों में ही सुकरात के समान प्रसिद्ध अध्यापक हो गया।

लेकिन बहुत से व्यक्ति उस बुड्ढे व्यक्ति से प्रेम करते थे और उसकी बुद्धिमानी पर प्रसन्नता प्रकट करते थे किंतु कुछ व्यक्ति ऐसे भी थे जो उसकी बातों को पसंद नहीं करते थे। उसने शिक्षा दी थी कि, 

"व्यक्ति का अपना मस्तिष्क उसके आचरण पर देवताओं से अधिक प्रभाव डालता है।" 
 कुछ लोगों को सुकरात की शिक्षाएं नवीन तथा दुष्टतापूर्ण दिखाई दी।
उसने कहा था कि एथीन (Athene) नामक देवी तथा अन्य देवताओं के सामने बलि (Sacrifice) चढ़ाने से भी अधिक अच्छे और काम हैं; और बहुत से आदमियों का विचार था कि वह देश के नवयुवकों को गुमराह कर रहा है। वह उन सब बातों पर प्रश्न करता है जिन्हें मानना उनको सिखाया गया था और वह इस प्रकार देश के नवयुवकों के दिमाग में संदेह उत्पन्न कर रहा है।

एथेंस पर शासन करने वाले व्यक्तियों ने सुकरात को आदेश दिया कि वह न्यायालय में उपस्थित होकर अपने मुकदमे की पैरवी करें। उसके मित्रों ने उस से निवेदन किया कि जब तक उसके विरुद्ध उठा हुआ तूफान समाप्त न हो जाए तब तक वह या तो एथेंस से बाहर कहीं चला जाए या छिप जाए किंतु सुकरात कायर नहीं था। वह जानता था कि उसने कोई गलत काम नहीं किया है और उसने लोगों को उसी बात की शिक्षा दी है जिसे वह उचित, सत्य और सम्मानित समझता था। वह न्यायालय को चल दिया उसके कपड़े और जूते धूल से भरे हुए तथा गंदे थे लेकिन प्रत्येक व्यक्ति जानता था कि इन फटे-पुराने गंदे कपड़ों में एक श्रेष्ठ हृदय स्पंदन करना है।

उसने शक्तिशाली और गौरवपूर्ण भाषण दिया उसने एथेंस के रहने वाले व्यक्तियों से कहा कि, 

"उस के जीवन के अंतिम कुछ वर्ष लेकर उन्हें कोई लाभ नहीं होगा किंतु वह उन बातों के लिए जिन्हें वह ठीक समझता है प्रसन्नता पूर्वक कई बार मरने के लिए तैयार है।"
जजों ने उसकी बातों को सुना उषा से प्रश्न पूछे और अंत में मृत्यु की सजा दी। न्यायालय के निर्णय पर उस बुड्ढे यानी सुकरात ने कोई शिकायत नहीं की। न्यायालय के भीड़ भरे कमरे के चारों ओर देखकर वह अपनी छड़ी पर झुक गया। प्लेटो और उसके अन्य शिष्य मुकदमे में हर समय उसके साथ थे। उसने उसने कहा, 
"कोई भी बुराई किसी अच्छे व्यक्ति के साथ घटित नहीं हो सकती है ना तो इस जीवन में और ना मृत्यु के बाद अतः प्रसन्नता पूर्वक रहो मुझे जाना है मेरे प्रस्थान का समय आ गया है और हम अपने अपने मार्ग पर जाते हैं मुझे मरना है और तुम्हें जीवित रहना है।"

तब सैनिक आए और उसे जेल खाने ले गए उसकी स्त्री अपने तीन बच्चों सहित उसके पीछे-पीछे चली उसके प्रिय शिष्यों में से बहुत से उसके साथ हैं बहुत समय तक उन्होंने उससे बातें की और उसने उन्हें बहुत सी शिक्षाएं दी जो बुद्धिमानी से भरी हुई थी, जिन्हें उन्होंने आदर के साथ अपने दिल में संचित कर लिया किंतु उस संपूर्ण समय उसके मित्र जानते थे कि, सुकरात की मृत्यु जल्द ही हो जाएगी। वह बहुत दुखी थे। क्योंकि जैसा कि प्लेटो ने लिखा था, "वह उनके पिता के समान था जिससे उन्हें वंचित किया जा रहा था और वे अपने शेष जीवन को अनाथों की तरह व्यतीत करने के निकट थे।"


वृक्ष की चोटियों के पीछे सूर्य अस्त होने के पश्चात जेलर अंदर आया और उसने सुकरात से मरने के लिए तैयार होने के लिए कहा जब में लोगों को मृत्यु दंड दिया जाता था तब उन्हें पीने के लिए जहर का प्याला दिया जाता था सुकरात इसके परिचित था और उसने अपना सिर हिलाकर जिला को अपनी स्वीकृति प्रदान की जेलर ने दुखी होकर सुकरात की ओर देखते हुए कहा तुम सुकरात जिसे मैं उन सब योगियों में जो कभी भी इस स्थान पर आए सर्वश्रेष्ठ और मानता हूं मुझसे उस समय मत हो जाना जब मैं तुमसे जहर का प्याला पीने को कहा क्योंकि मैं तुम्हारी मृत्यु का कारण नहीं हूं बल्कि अन्य लोग हैं यह कह कर फूट-फूट कर रोता हुआ जेल चला गया और कुछ समय के बाद जहां का प्याला लेकर पुनः आ गया।


सुकरात ने कहा देवता अगर इस संसार से दूसरे संसार तक की मेरी यात्रा सफल बनाएं यह कह कर सुकरात ने जहर के प्याले को उठाकर अपने होठों से लगा लिया सुकरात के शिष्यों ने अपने आंसुओं को रोकने का प्रयास किया किंतु एक व्यक्ति ने जो शेष की बकरी और दूसरे व्यक्ति दुखी हो गए और शीघ्र ही कमाल होने की आवाज से भर गया जहर के अधूरे प्याले को अपने हाथ में लेकर सुकरात रुक गया उसने पूछा यह विचित्र और कैसा है मैंने सुना है कि व्यक्ति को शांति पूर्व मारना चाहिए तुम्हें चिल्लाना नहीं चाहिए शांत रहो और धैर्य रखो कोई बात याद करते हुए उसने चारों को देखा उसने अपने शिष्यों में से एक से धीरे से कहा क्राइटों क्या तुम एक कृपया कर सकते हो? मुझे ईकुलापीएस देवता को एक मुर्गा भेंट करना है क्या तुम मेरा यह काम कर दोगे।

क्राइटों ने कहा, "तुम्हारा यह काम अवश्य कर दिया जाएगा। क्या कुछ और कहना है?" उसने कुछ समय तक प्रतीक्षा की किंतु उसे कोई उत्तर नहीं मिला क्योंकि यूनानीयों में सबसे महान व्यक्ति सुकरात मर चुका था।

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