Para 1: मुझे यह ज्ञात नहीं कि हममें से किसने गाड़ी में पहले प्रवेश किया। वास्तव में मुझे बिल्कु मालूम नहीं था कि वह कुछ समय से इस गाड़ी में है। यह लन्दन से मध्यवर्ती क्षेत्र के एक नगर के लिए जाने वाली अन्तिम रेलगाड़ी थी—यह प्रत्येक स्टेशन पर रुकने वाली गाड़ी, अत्यन्त धीमी चलने वाली गाड़ी और उन गाड़ियों में से एक है जो आपको नित्यता का बोध कराती है। जब यह बली तो यह काफी भरी हुई थी, परन्तु जैसे-जैसे हम नगर के बाहरी स्टेशनों पर रुकते गए, यात्री एक-एक दो-दो करके उतरते गए और लन्दन को बाहरी सीमा को छोड़ने के समय तक मैं अकेला रह गया या समझिए मैंने सोचा कि मैं अकेला हूँ।
Para 2: उस गाड़ी में अकेले होने में स्वतन्त्रता का एक सुखद आभास होता है जो रात में शोर मचाती झटके देकर हिलती हुई चलती है। यह बड़ी सुहावनी स्वतन्त्रता और स्वच्छन्दता होती है। आप जो भी चाहें कर सकते हैं। आप जितनी जोर से चाहे अपने आप से बातें कर सकते हैं और कोई भी आपकी बात नहीं सुन सकता। आप जोन्स (काल्पनिक व्यक्ति) से तर्क-वितर्क कर सकते हैं और उसके विरोधी प्रहार के बिना सफलतापूर्वक उसे धूल चटा सकते हैं। आप अपने सिर के बल खड़े हो सकते हैं और कोई भी आपको नहीं देख सकता। आप बिना रोक-टोक और बाधा के गा सकते हैं या दो कदम नाच सकते हैं या गोल्फ में गेंद मारने का अभ्यास कर सकते हैं या फर्श पर कंचे का खेल खेल सकते हैं। आप किसी व्यक्ति को विरोध का अवसर दिए बिना खिड़की खोल सकते हैं या उसे बन्द कर सकते हैं। आप दोनों खिड़कियों को खोल सकते हैं या दोनों को बन्द कर सकते हैं। वास्तव में, आप उन्हें खोलते और बन्द करते हुए एक प्रकार का स्वतन्त्रता समारोह मना सकते हैं। आप अपनी पसन्द के अनुसार डिब्बे के किसी कोने में बैठ सकते हैं और बारी-बारी से सभी का उपयोग करके देख सकते हैं। आप गद्दों पर पूरे फैलकर लेट सकते हैं और ब्रिटिश राज्य के सुरक्षा अधिनियम (DORA) के नियमों और उसमें निहित भाव (हृदय) को तोड़ने के सुख का आनन्द ले सकते हैं। इस अधिनियम को यह मालूम भी नहीं होगा कि उसका हृदय तोड़ा जा रहा है। आप इस अधिनियम तक से बच निकले हैं।
Para 3: उस रात मैंने इनमें से कोई काम नहीं किया। वे सब मेरे ध्यान में ही नहीं आए। जो मैंने किया वह अति साधारण था। जब मेरा अन्तिम सहयात्री भी चला गया तो मैंने अपना समाचार पत्र नीचे रख दिया, अपने हाथों और पैरों को फैलाकर अंगड़ाई ली, खड़े होकर खिड़की में से बाहर ग्रीष्म ऋतु की उस शान्त रात्रि को देखा जिसमें होकर मैं यात्रा कर रहा था। दिन की धुंधली रोशनी अर्थात् संध्याकाल के हल्के प्रकाश को देखा जो अभी उत्तरी आकाश में जाते-जाते रुक रहा था; गाड़ी के एक पार से दूसरी पार गया और दूसरी खिड़की से बाहर देखा; एक सिगरेट सुलगाई, बैठ गया और फिर से समाचार पत्र पढ़ने लगा। तब कहीं मुझे अपने सहयात्री का पता लगा। वह आया और मेरी नाक पर बैठ गया......... वह उन पंखवाले पैने साहसी कीट-पतंगों में से एक था जिन्हें हम बोलचाल में मच्छर कहते हैं। मैंने उसे अपनी नाक पर से उड़ा दिया और उसने डिब्बे का चक्कर लगाया, उसकी तीनों विमाओं (लम्बाई, चौड़ाई और ऊँचाई) का निरीक्षण किया, प्रत्येक खिड़की पर गया, प्रकाश के चारों ओर फड़फड़ाया, उसने यह निर्णय किया कि कोने में बैठे हुए विशाल प्राणी (अर्थात् पाठ के लेखक) से दिलचस्प कोई वस्तु नहीं है, वह आया और मेरी गर्दन को देखा। )
Para 4: मैंने उसे फिर उड़ा दिया। वह उछलकर हट गया, डिब्बे में पुनः एक चक्कर लगाया, लौटकर धृष्टतापूर्वक मेरे हाथ के पिछले भाग पर बैठ गया। मैंने कहा, इतना काफी है, उदारता की अपनी सीमा होती है। दो बार तुम्हें चेतावनी दी जा चुकी है कि मैं विशिष्ट व्यक्ति हूँ, मेरा विशिष्ट व्यक्तित्व अपरिचितों की गुदगुदाने की अशिष्टता पर रोष प्रकट करता है। मैं काली टोपी धारण करता हूँ अर्थात न्यायाधीश का पद ग्रहण करता हूँ। मैं तुम्ह मृत्युदण्ड देता हूँ। न्याय की यह मांग है और न्यायालय इसे मृत्युदण्ड को) प्रदान करता है। तुम्हारे विरुद्ध अनेक आरोप है। तुम आवारा हो; तुम जनता को कष्ट देने वाले हो; तुम बिना टिकट यात्रा कर रहे हो, तुम्हारे पास भोजन (मांसाहार) के लिए कूपन भी नहीं है। इस सबके तथा अन्य बहुत से गैर-कानूनी कार्यों के लिए तुम अब मरने वाले हो। मैंने अपने सीधे हाथ से एक तेज और बातक प्रहार किया। वह दौठतापूर्वक आसानी से प्रहार को इस तरह बचा गया कि मैंने अपने को अपमानित महसूस किया। मेरा अहंकार जाग गया। मैं अपने हाथ से और समाचार पत्र से उस पर झपटा। मैं अपनी सीट पर उछलकर चढ़ गया और लैम्प के चारों और उसका पीछा किया, मैंने बिल्ली जैसी चालाकी भरी चालें अपनाईं, जब तक वह नीचे उत्तरे तब तक प्रतीक्षा की भयानक रूप से धीरे-धीरे उसके निकट था और अचानक व भयानक तेजी से उस पर प्रहार किया।
Para 5: यह सब व्यर्थ रहा। वह मेरे साथ खुलकर और चतुराई दिखाते हुए इस प्रकार खेला, जैसे कोई कुशल वृषहन्ता (खेल में साँड़ को भड़काकर अन्त में मार डालने वाला खिलाड़ी) एक क्रुद्ध साँड़ के चारों ओर करतब दिखा रहा हो। यह स्पष्ट था कि वह आनन्द ले रहा है कि इसी बात से उसने मेरी शान्ति भंग की थी। उसे थोड़े से खेल की इच्छा थी और ऐसा बढ़िया कौन-सा खेल हो सकता था जैसा इस विशाल, भारी-भरकम पवन चक्की जैसे प्राणी के द्वारा पीछा किया जाना, जिसका स्वाद इतना अच्छा हो और जो इतना निःसहाय तथा मूर्ख प्रतीत हो ? मैं उसकी भावना को समझकर उसमें आनन्द लेने लगा। वह मेरे लिए मात्र एक कीट-पतंग नहीं रह गया था। वह एक व्यक्तित्व के रूप में विकसित हो रहा था, एक बुद्धिमान जीव के रूप में इस डिब्बे के स्वामित्व पर मेरे साथ बराबरी का दावा कर रहा था। मेरे हृदय में उसके प्रति स्नेह उत्पन्न होने लगा और दंभ की भावना मिटने सी लगी। मैं उस प्राणी से स्वयं को श्रेष्ठ कैसे मान सकता था जो स्पष्ट रूप से उस होने वाली एकमात्र प्रतियोगिता में मेरा स्वामी बन गया? फिर उदार क्यों न होऊँ? उदारता और दया मनुष्य के सर्वोत्तम गुण हैं। इन उत्तम गुणों के प्रयोग द्वारा मैं अपने सम्मान को पुनः प्राप्त कर सकता था। इस समय में एक हास्यास्पद व्यक्ति था, हँसी और तिरस्कार का पात्र दया दिखाकर मैं मनुष्य के नैतिक गौरव की पुनः स्थापना कर सकता था और सम्मान के साथ अपने स्थान पर लौटकर जा सकता था। मैंने अपने स्थान पर लौटकर जाते हुए कहा- मैं मृत्युदण्ड को वापस लेता हूँ। मैं तुम्हें मार नहीं सकता, इसलिए तुम्हारा पुनरुद्धार कर सकता हूँ। मैं ऐसा ही कर रहा हूँ अर्थात् तुम्हें छोड़ता हूँ।
Para 6: मैंने अपना समाचार पत्र उठा लिया और वह आया तथा उस पर बैठ गया। मैंने कहा- मूर्ख, तुमने स्वयं को मेरे हाथों में सौंप दिया है। विचारों की इस सम्मानित साप्ताहिक पत्रिका को दोनों ओर से एकदम बन्द करते ही तुम एक शद बन जाओगे और पीस ट्रंप (Peace Trap) तथा दि मोडेस्टी ऑफ मि० ह्यूज़ (The Modesty of Mr Hughes) दो लेखों के बीच भिचकर तुम साफ तौर से सैण्डविच बन जाओगे। परन्तु मैं ऐसा नहीं करूंगा। मैंने तुम्हारा पुनरुद्धार किया है और मैं तुमको विश्वास दिलाता हूँ कि जब यह विशाल प्राणी कुछ कहता है तो उसे करके दिखाता है। इसके अतिरिक्त, अब तुम्हें मारने की मेरी इच्छा भी नहीं है। तुम्हें और अच्छी प्रकार से समझने के पश्चात् मुझे तुम्हारे प्रति एक प्रकार का स्नेह अनुभव होने लगा है। मुझे लगता है कि सेन्ट फ्रांसिस तुम्हें छोटा भाई कहते। मैं ईसाई उदारता और शिष्टता के समान इतना आगे नहीं बढ़ सकता। परन्तु मैं इससे अधिक दूर का सम्बन्ध मानता हूँ। भाग्य ने गर्मियों को इस रात में हमें सहयात्री बना दिया है। मैं तुम्हें रोचक लगा हूँ और तुमने मेरा मनोरंजन किया है। अहसान दोनों ओर से है और इस मौलिक तथ्य पर आधारित है कि हम दोनों नश्वर प्राणी है। जीवन के सुखद क्षण तथा दुःखद पहलू दोनों ही समान रूप से हम दोनों में विद्यमान हैं। मैं समझता हूँ कि तुम्हें अपनी इस यात्रा के सम्बन्ध में कुछ पता नहीं होगा। मैं स्वयं आश्वस्त नहीं हूँ कि मैं अपनी यात्रा के सम्बन्ध में अधिक जानता हूँ। यदि इस पर विचार किया जाए तो हम बहुत अधिक एक समान हैं— केवल एक आभास जो कभी है और कभी नहीं, रात के समय प्रकाशित गाड़ी में आते हुए, थोड़ी देर प्रकाश के चारों ओर फड़फड़ाते हुए और रात में ही बाहर चले जाते हुए कदाचित्..............।
Para 7: "आज रात आगे जा रहे हैं, श्रीमान्?" खिड़की पर एक आवाज ने कहा वह एक हितैषी कुली था जो मुझे संकेत दे रहा था कि यह मेरा स्टेशन है। मैंने उसे धन्यवाद दिया और कहा कि मैं झपकी ले रहा होऊंगा। और अपना टोप तथा छड़ी लेकर मैं गर्मियों की सुहावनी रात में बाहर आ गया। जैसे ही मैं डिब्बे का दरवाजा बन्द कर रहा था मैंने सहयात्री को लैम्प के चारों ओर मंडराते हुए देखा..…......।
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